लोगों की भाषा मेरी
समझ में नहीं आती। जब एक लड़का और लड़की एक-दूसरे को ठोकते हैं तो बोलते हैं लड़के ने
लिया और लड़की ने दिया। इसको उल्टा क्यों नहीं बोलते? मतलब कि लड़की ने लिया और लड़के ने दिया। क्यों, लड़की नहीं ले सकती क्या? लड़की का काम सिर्फ देना है? मुझे देख लो। मैं लेती हूँ। जो
लड़का पसंद आया, उसके पास जाती हूँ, उसे पटाती हूँ, और उसे तब तक लेती हूँ जब तक उससे बोर न हो जाऊँ या फिर दूसरा कोई नया न मिल
जाये। अब लड़के की किस्मत है कि मैं उससे दो मिनट में बोर होती हूँ या फिर दो साल
में। पर लड़का मुझसे बोर नहीं होता। होगा
भी कैसे? मैं इतने तरीकों से लेना जानती हूँ कि वो हर बार सोचता है कि उसे इस बार नया
क्या मिलेगा? मैं किसी लड़के को बांधने की कोशिश नहीं करती। उसे पूरी आज़ादी देती हूँ कि वो
किसी और से मिले या फिर किसी और को दे। मुझे सिर्फ इससे मतलब है कि जब वो मेरे साथ
है तो क्या कर रहा है। ये आज़ादी ही उसकी बेड़ियाँ बन जाती है। जब चाहती हूँ, मेरे पास खिंचा चला आता है।
वो चाहता है मैं उस पर हक़ जताऊँ, उसके न होने पर नाराज़ हो जाऊँ और उसे miss करूँ। उसकी यही ख़्वाहिश उसे
मुझसे जोड़े रहती है। न उसकी ख़्वाहिश पूरी होती है, न उसकी बेड़ियाँ टूटती हैं।
अठारह की थी जब मैंने
पहली बार किसी को लिया था। अभय बिन्दु नाम था, और वो मुझे ट्यूशन पढ़ाने आता था। उम्र में मेरा डबल
था। मुझे उसके पढ़ाने का तरीका पसंद आता था। वो बड़े प्यार से कोई बात समझाता था। जब
भी वो मुझे कुछ पढ़ा रहा होता, मेरी निर्दोष आँखों में उसकी बिन कपड़ों की तस्वीरें आने
लगती थीं। मैं अपने मन के स्कीन पर देखती थी कि मैं उसे उसके बेड रूम में लिटाकर
उसे अच्छे से ठोक रही हूँ, और उसके बीवी चाय के कप लेकर हमारे फ्री होने का इंतज़ार कर
रही है। उस दिन मुझे पता चला कि मुझे सिंगल लड़के कतई पसंद नहीं हैं। मुझे वैसे
लड़के पसंद हैं जिन्हें और कोई ले रही है, चाहे वो शादीशुदा हो या फिर किसी रिश्ते में हो।
दूसरों की प्लेट की रसमलाई मुझे ज़्यादा मीठी लगती है, और अपने प्लेट की रसमलाई को
छूने का भी दिल नहीं करता।
तो एक दिन मैंने सोच
लिया कि अभय बिन्दु ही वो पहला शख्स होगा जो मेरे अंदर जाएगा। वैसे मैं उसे अपने
घर में भी ले सकती थी, पर उसमें वो मज़ा नहीं आता। मैं चाहती थी कि उसे उसके घर में उस बिस्तर पर लूँ
जिस पर उसकी बीवी उसे लेती है। मैं उस दिन का इंतज़ार करने लगी जब इस शुभ काम का
मुहूर्त आयेगा। गर्मियों के मौसम में पढ़ाते समय उसने मेरी माँ को बताया कि उसकी
बीवी अपने बच्चे को लेकर एक महीने के लिए मायके गयी हुई है। मेरे कान खड़े हो गए, और जांघों के बीच हल्की सी
सुरसुरी सी फैल गयी। ये मेरा पहली बार होगा। इसलिए थोड़ा डर भी लग रहा था, और मन में उत्तेजना भी हो
रही थी। अपने मन में तो मैं उसे कई बार ठोक चुकी थी, पर वास्तविक ज़िंदगी में ठोकूँगी तो कैसा महसूस होगा, यह सोच-सोचकर मेरा चेहरा लाल
हुआ जा रहा था।
करीब दस साल पहले मैं बिलकुल
क्यूट बच्ची जैसी दिखती थी। वैसे मेरी हाइट पाँच फीट पाँच इंच हो गई थी, और मेरे मम्मे भी बड़े और
सुडौल हो गए थे, पर मुझे देखकर ऐसा लगता था जैसे नर्सरी की बच्ची को खींचकर लंबा कर दिया गया
हो। मैं बोलती भी छोटे बच्चों जैसी थी।
मुझे देखकर कोई भी नहीं सोच सकता था कि मैं अपने ख्यालों में बाकियों से दस साल
आगे थी। मेरे मन में जो-जो इच्छाएँ जगती थीं, वो बिस्तर के किसी अनुभवी खिलाड़ी के मन में ही जगती
होंगीं। एक लड़की के शरीर में मैं एक मर्द थी। और मुझे अपनी पसंद के मर्द अपने
खिलौने जैसे लगते थे। अगले दिन मैं अपने पहले खिलौने से खेलने वाली थी।
मैंने पूरी तैयारी की।
सुबह नहाते समय अपने पैरों के बीच के बालों काटकर छोटा किया। मैंने सुना था मर्दों
को छोटे बाल ज़्यादा अच्छे लगते हैं। ब्लू फिल्मों में तो लड़कियां शेव कर लेती हैं।
मेरे पास एक पत्रिका थी जिसमें कई लड़कियों ने बताया था कि फ़र्स्ट टाइम में
क्या-क्या दिक्कतें आती हैं। मैं उसके एक-एक पन्ने को चाट गयी। मैंने मन ही मन
प्लान बनाया कि कैसे उसके घर जाऊँगी और उसे तैयार करूंगी।
दोपहर तीन बजे मैंने
उसे अपने घर से फोन किया। उस समय तो लैंड्लाइन फोन ही होता था। फोन पर मैंने उसे
कहा कि मैं उसके घर के बगल में एक सहेली के यहाँ आई हुई हूँ, और एक सवाल पूछने उसके घर
आना था। वो मुझे छोटी बच्ची ही समझता था। वो मान गया।
आधे घंटे के अंदर मैं
उसके साथ सोफ़े पर बैठकर मैथ का एक सवाल डिस्कस कर रही थी। मैंने स्कर्ट और टी-शर्ट
पहन रखी थी। वो सामने सोफ़े पर बैठा था, और मैं एक चेयर पर बैठी थी। वो बातें कर रहा था, और मैं मन ही मन सोचे जा रही
थी कि आज उसके साथ क्या-क्या करूंगी। मन तो कर रहा था कि उस पर झपट जाऊँ और सोफ़े
पर ही उसका क्रियाकर्म कर डालूँ। मेरी नज़र बार-बार उसकी टांगों के बीच जा रही थी।
वहाँ कोई उभार नहीं था। उसका लौलीपोप सोया पड़ा था। उसके बारे में सोचने मात्र से
मेरी योनि गीली हो रही थी। बहुत ठरकी हूँ मैं। किसी को क्या पता!
अब अगला कदम उठाने की
बारी आ गयी थी। कल्पना को यथार्थ में बदलने का समय आ गया था। मैंने जान-बूझकर
किताब के पन्ने पलटते समय उसके हाथों को छूया, पर उसे कोई हिंट नहीं मिला। मैं काफी ढीली-ढाली
टी-शर्ट पहनकर आई थी। अपनी गर्दन खुजाने का बहाने मैंने अपनी शर्ट के गले को नीचे
खींच दिया ताकि मैं जब भी झुकूँ, मेरे मम्मों का ऊपरी हिस्सा उसे दिख जाये। फिर मैं झुककर
बैठ गयी मानो मुझे मैथ्स के सवाल हल करने में बड़ा मज़ा आता है। मैं इंतज़ार कर रही
थी कि कब उसकी नज़र मेरे मम्मों पर पड़े, फिर मैं आगे बढ़ूँ। फिर वही हुआ जो मैंने सोचा था।
उसकी नज़र मेरे गोरे मम्मों के उभारों पर पड़ी, और फेविकोल की तरह चिपक गई। मैं आँखें आधी बंद करके
कुछ सोचने का नाटक करने लगी, और मैंने उसे पूरा मौका दिया कि अपनी नज़रों से मेरे मम्मों
को दबाये और चूसे। उसने करीब दस सेकंड तक मज़े लिए, फिर जबर्दस्ती किताब पर नज़रें ले गया।
मैंने सोचा बाकी लोगों
की तरह वक़्त बर्बाद करने में क्या फायदा है। मैं अगले ही पल जाकर सोफ़े पर उसके बगल
में बैठ गई। वो घबरा सा गया। उसे लगा उसकी चोरी पकड़ी गई। मैंने उसकी जांघ पर हाथ
रखा और उसकी आँखों में आँखें डाल दी। मैं पिछले जन्म में ज़रूर चंगेज़ खान थी। उसका
नाम तो सुना ही होगा। कहते हैं, उसने अपनी ज़िंदगी में हजारों लड़कियों का रेप किया था। हर
रोज़ सात लड़कियां उसका खुराक थीं। मैं रेप के खिलाफ हूँ। लेकिन हर रोज सात
रसगुल्लों वाला ख्याल अच्छा है।
‘किस करो न,’ मैंने उससे कहा।
‘क्या!’ वो घबरा गया।
‘बिना किस किए मुझे ठोकोगे? बड़े कमीने हो!’ मुझे उसकी खराब हालत देखकर अच्छा लग रहा था। मेमने
जैसा दिख रहा था।
‘क्या कह रही हो तुम?’
‘देखो, सर! मैं यहाँ तुम्हारे घर पढ़ने नहीं आई हूँ। तुम्हें लेने आई हूँ।‘
‘लेकिन तुम तो अभी बच्ची हो। ये सब क्या?’
‘बच्ची होगी आपकी बीवी। मेरा फ़र्स्ट टाइम है। टाइम मत खराब करो। घर में कंडोम
है न?’
‘हाँ, है तो। लेकिन मैं शादीशुदा हूँ। और तुम्हारी उम्र अभी बहुत कम है।‘
साले की फट रही थी। ये
मेरी क्या फाड़ेगा!
‘शादीशुदा हो तो क्या हुआ! मुझे दे नहीं सकते? देखो तुम्हारा खड़ा हो गया है।‘
उसकी नज़र अपने लौलीपोप
पर गई। उसने अंडरवियर नहीं पहन रखा था। उसका लौलीपोप जहाज के मस्तूल की तरह खड़ा हो
गया था, और मेरी ओर निशाना लगाए हुये था। उसे देखकर मेरे मुंह में लार भर आई। साला, अभी इसकी हेकड़ी निकालती हूँ।
मेरे गर्मी ने इसे पिघला न दिया, तब बोलना।
‘देखो, ये सब रहने दो। फालतू में हम दोनों फंस जाएँगे।‘ वो सहमी आवाज़ में बोला।
‘फँसोगे तो तब जब तुम मुझे दोगे नहीं।‘ मैंने सोचा ये ऐसे नहीं मानेगा।
‘क्या मतलब?’
‘बीवी घर पे है नहीं। और मुझे पढ़ने के लिए बुलाते हो। लोगों को पता चलेगा तो
पता नहीं क्या होगा।‘ मैंने आँखों को बच्चों को मटकाते हुये कहा। उसे पता नहीं चला कि मैं धमका रही
हूँ या मज़ाक कर रही हूँ।
‘पर तुम तो खुद आई थी!’ उसने कहा।
‘मज़ाक कर रही हूँ, सर! आप का मूड नहीं है तो कोई बात नहीं। मैं चलती हूँ। आप कल घर पे पढ़ाने आ
जाना।‘ यह कहकर मैं उठ खड़ी
हुई। मैं उसके साथ जबर्दस्ती नहीं करना चाहती थी। जो भी हो, बंदा शरीफ था। मैं अपने पहले
अनुभव के लिए किसी का गलत फायदा नहीं उठाना चाहती थी।
मैं अपनी किताबें
समेटने लगी, तभी उसने अपने हाथ से मेरी कलाई हल्के से पकड़ ली। मैंने उसके चेहरे को देखा। किताबों
को हटाया, और उसकी जांघों पर बैठ गई, फिर बड़े प्यार से उसके मुंह में अपना मुंह डाला, आँखें बंद की, और उसकी जीभ चूसने लगी।
उसे चूमने से ज़्यादा
मज़ा किसी और चीज से आ रहा था। उसका खड़ा लोलिपोप मेरे नितंबों के नीचे दबा हुआ था, और बिलबिलाए तेंदुए की तरह
ऊपर उठना चाह रहा था। उसके ठोसपन और उसकी रगड़ से मेरे नितंबों को कितना मज़ा आ रहा
था, बताना मुश्किल है। वो
बार-बार मेरे नितंबों की दरार में कोई रास्ता खोज रहे थे, और मुझे उन पर दया आ रही थी।
मैं एक सेकंड के लिए उठ खड़ी हुई, अपनी स्कर्ट को उठाया और फिर अपनी नंगी जांघों के बल अपने
अभय सर पर बैठ गई। लेकिन अब सर में भी थोड़ा कोन्फ़िडेंस आ गया था। उन्होने मुझे
हल्का सा उठाया, अपने पाजामे को हल्का सा सरकाया, और अपने लोलिपोप को मेरी नंगी जांघों को चूमने की आज़ादी दे दी।
बता नहीं सकती मुझे कैसा लग रहा था। अभी तक मैंने उनके लोलिपोप को देखा नहीं था।
पर उसका तपता खंभा अब मेरी नर्म जांघों से रगड़ खा रहा था तो मैं बदहवास ही होने
लगी।
‘चलो, बेडरूम ले चलो।‘ मैंने ऑर्डर दिया।
उसने बिना एक पल की
देर किए मुझे उठाया, और अपने बेडरूम में बिस्तर पर पटक दिया। सामने दीवार पर उसकी बीवी और बच्चे
की बड़ी तस्वीर हमें घूर रही थी। बच्चों को ये सब नहीं देखना चाहिए, नहीं तो वो मेरे जैसा बन
जाएँगे। और मैं नहीं चाहती कि मेरे जैसे लोग हर गली-मुहल्ले में मिलें। मेरे जैसे
लोग हजारों में एक हों, तभी लुत्फ आता है। हाँ, उसकी बीवी मुझे देखे, यह आइडिया अच्छा था। उसकी माल को उसी के सामने लेने
का जो मज़ा है, वो मेरे जैसी कमीनी ही समझ सकती है। और कमीनेपन में क्या मज़ा है, वो मैं ही समझ सकती हूँ।
अभय सर मुझ पर चढ़ना
चाहते थे। पर मैंने उन्हें बड़े प्यार से बिस्तर पर लिटाया, और एक झन्नाटेदार थप्पड़ गाल
पे दे मारा। वो थप्पड़ खाकर दर्द से बिलबिला उठे।
‘क्यों! अच्छा नहीं लगा?’ मैंने व्यंग्य वाली मुस्कान के साथ पूछा।
उस बेचारे ने पाँच साल
के बच्चे की तरह सिर ‘न’ के इशारे में हिला दिया।
‘मैंने एक बार मारा तो अच्छा नहीं लगा? अभी आधे घंटे में आप मेरी जहां चाहोगे, वहाँ मारोगे। तब मुझे अच्छा
लगेगा?’ मैंने उसके होठों को हल्के से चूमकर कहा।
अभय सर मेरा इशारा समझ
गए। वो मुस्कुराए बिना नहीं रह पाये।
बेचारे को मुस्कुराने
का पूरा टाइम भी नहीं मिला था कि मैंने उनके पाजामे को खींचकर जमीन पर फेंक दिया।
उनका मोटा काला लोलिपोप हवा में लहरा रहा था। आस-पास घनी घास थी, और नीचे दो नींबू मेरी भूख
बढ़ा रहे थे। मैंने आँखें बंद कीं, और उनके लोलिपोप को सूंघने लगी। फिर जीभ निकालकर उसे छू
लिया। मेरा पूरा शरीर आनंद से सिहर उठा। मैंने उनकी टांगों को हल्का सा फैलाया, और नींबुओं को मुंह में
डालकर उन्हें अंदर ही अंदर जीभ से मसाज देने लगी। फिर उनका लोलिपोप सामने से पूरा
मुंह में ले लिया। ये मेरा पहली बार था। न मुझे विश्वास हो रहा था, न अभय सर ऐसा सोच रहा होगा।
इतना आत्म-विश्वास तो किसी पुराने खिलाड़ी में ही हो सकता है। शायद पिछले जन्म में
मैंने काफी मज़े लूटे थे, और उसी का अनुभव अभी काम आ रहा था। कहते हैं, कुछ भी सीखा कभी बेकार नहीं जाता।
दस मिनट अच्छे से
चूसने के बाद मैंने सोचा अब इस साले लोलिपोप को मोम की तरह गलाने का वक़्त आ गया
है। आप पूछेंगे, उन दस मिनटों में बेचारे अभय सर क्या कर रहे थे। वो बार-बार उठने की कोशिश कर
रहे थे, और मैं उन्हें प्यार से धक्का मारकर गिरा रही थी।
उन दस मिनटों में
लोलिपोप अच्छे से गीला हो गया था, और पागल अजगर की तरह मुझे देख मुंह फुफकार रहा था। साला, कुत्ता! इसकी तो मैं!! रुक
बेनचोद।
मैंने अपनी स्कर्ट
निकालकर नीचे फेंकी। अपनी लाल पैंटी उतारकर अभय सर के मुंह पे दे मारी। उन्हें भी
तो चूसने के लिए कुछ मिलना चाहिए। बेचारे तब से भूखे-प्यासे अपनी लिवा रहे हैं।
फिर मैं घोड़े पर चढ़ने
की स्टाइल में उनके लोलिपोप के पास बैठ गई, और अपने गुलाब को उस पर मद्धिम-मद्धिम रगड़ने लगी।
अपने गुलाब की उससे दोस्ती करा रही थी ताकि वो उसे अंदर लेते समय ज़्यादा नखरे न
दिखाये। आधे मिनट की रगड़ के बाद मेरा गुलाब रस से भर गया। उस गुलाब से आनंद की
अमरलता निकली जो अंदर ही अंदर मेरे नसों के रास्ते पूरे शरीर में फैल गई। अभय सर ने मेरी बाहों को जोड़
से पकड़ लिया।
‘सर, अपनी बीवी को फोन लगाओ।‘ मैंने कहा।
‘अभी! लेकिन क्यों?’ उन्होने पूछा।
‘फोन लगाओ। और जो मन करे, बात करो। जब बात करना शुरू करोगे तब मैं तुम्हारे हीरो को
अंदर लूँगी। और जब तक बात करते रहोगे, उसे अंदर रखूंगी। अब तुम सोच लो, कितनी देर बात करोगे।‘ मैंने उन्हें साफ शब्दों में
बताया।
बेचारे की समझ में
नहीं आ रहा था कि लड़की चाहती क्या है। पर मजबूर था बेचारा। बिस्तर के बगल में ही
फोन रखा था। उसने नंबर डायल किया।
‘फोन स्पीकर पर डाल दो।‘ मैंने आदेश दिया।
‘तुम कुछ बोलोगी तो नहीं?’ उसने झिझकते हुये कहा।
‘पागल समझ रखा है? मैं आपकी मारने आई हूँ, दोनों की मरवाने नहीं।‘ मैंने उस गधे के गाल पर एक चपत लगा दी।
फोन रिंग होने लगा।
उधर से एक औरत ने फोन उठाया। अभय सर की सास थी।
‘मम्मी, मैं अभय बोल रहा हूँ। नूतन है क्या?’ सर ने कहा।
‘हाँ दामादजी, अभी बुलाती हूँ। नूतन!’ मेरी सौत की मम्मी ने पुकारा।
‘हाँ अभय, कैसे हो?’ नूतन ने कहा।
इसी के साथ मैंने अभय
सर के लोलिपोप के मुंह को अपने गुलाब के छेद पर टिकाया, और अंदर ले लिया। वो सट से
आधा इंच अंदर चला गया, और मेरे मुंह से चीख निकलते-निकलते रह गई। दोनों की जान बच गयी।
पर उस बेचारे के मुंह
से हल्की सी सिसकारी निकल ही गई।
‘अभय, क्या हुआ? तुम ठीक तो हो?’ उसकी प्यारी पत्नी के मुंह से चिंता भारी आवाज़ निकली। उस बेचारी को क्या पता
कि उसका पति कितने मज़े में है। अपनी ढीली-ढाली बोरिंग बीवी के बदले अपनी चिकनी
स्टूडेंट को दे रहा है। कुछ कमीनों की किस्मत छप्पड़ फाड़कर नहीं, गांड फाड़कर आती है।
‘नहीं, नहीं। बस ठीक हूँ, बस हल्का सा सिर दर्द था।‘ किसी तरह उसने अपनी आवाज़ को नॉर्मल करते हुये कहा।
मैंने उसके लोलिपोप को
बाहर निकाला, उसके निचले हिस्से को अपने अंगूठे और
पहली उंगली के रिंग में पकड़ा और उसके मुंह को फिर अपने गुलाब में हल्का सा डाला, और ज़ोर से अंदर ले लिया।
दर्द के मारे मेरा शरीर कांप गया। लगा कि अपनी चीख से घर की दीवारें फाड़ दूँगी। मेरी
जान निकलकर गले में अटक गई। अब मैं किसी भी दर्द के लिए तैयार थी।
पर बेचारे अभय सर ज़ब्त
नहीं कर पाये। उनके मुंह से फिर चीत्कार निकल गई। इतनी ज़्यादा खुशी की आदत उन्हें
थी नहीं।
‘अभय, तुम बताओ, क्या हुआ है तुम्हें? मैं कल आ रही हूँ। मुझे लगता है तुम्हारी तबीयत बहुत खराब
है।‘ नूतन की आवाज़ में
परेशानी थी। उसकी परेशानी देखकर मैं अपना दर्द एक पल के लिए भूल गई, और मेरी हंसी आते-आते रुक
गई।
‘नहीं डार्लिंग। मैं ठीक हूँ। मैंने दवा ले ली है। आधे घंटे में ठीक हो जाएगा।
तुम बताओ। वहाँ....’
बेचारे अभय सर अपनी
बात पूरी भी नहीं कर पाये थे कि मैंने उनका लोलिपोप बाहर निकाला और तेज़ी से फिर
अंदर ले लिया। इस बार मैंने उसे पूरा अंदर लिया ताकि उसका मुंह अंदर जाकर मेरे
कलेजे को फाड़ डाले। दर्द इस बार भी हुआ, पर मज़ा चौगुना हो गया था।
फिर मैं भूल गई कि
मेरा माल अपनी बीवी से क्या बातें कर रहा है। मैंने आँखें बंद कर ली थीं, और अंदर-बाहर, अंदर-बाहर उसके लोलिपोप को
अपने गुलाब में लिए जा रही थी। मेरे दोनों हाथ उसके कंधों को जकड़े हुये थे, मेरी दोनों टांगें उसकी कमर
के दोनों ओर थीं, और मेरा कसा हुआ गुलाब उसके लोलिपोप को चूसकर खत्म करने पर उतारू था। पर मुझे
इतना ध्यान था कि मेरे मुंह से आवाज़ नहीं निकलनी चाहिए थी।
कुछ मिनटों बाद मेरे
गुलाब के अंदर से गरम लावा निकला और इस बार मैं चीख पड़ी। अंदर से जैसे कोई जिन्न
निकला और मेरे नसों को फाड़ते हुये आज़ाद हो गया। मैं चिल्लाई, ‘आह!’
साथ ही सर का लोलिपोप
का मुंह पिघल गया और उसका पिघला क्रीम मेरे लावे से जा मिला। माँ कसम, मज़ा आ गया।
आधे मिनट की इस मीठी
मौत के बाद मेरी आँखें खुली तो अभय सर सामने केले के छिलके की तरह बिखरे पड़े थे, उनके हाथ में अभी भी फोन था।
मतलब कि हमारी चीख उनकी बीवी के कानों में पड़ गई थी। यह सोचकर मेरे होश उड़ गए। अब
क्या होगा? मैंने तो मस्ती बढ़ाने के लिए ये गेम खेला था, पर ये तो उल्टा पड़ गया।
मैं जल्दी से बिस्तर से
अलग हुई और अपने कपड़े उठाने लगी। उनकी बीवी देर न सवेर ज़रूर पता लगा लेगी कि वो
लड़की कौन थी। फिर मेरे घर बात पहुंचेगी। सत्यानाश हो जाएगा। ये मैंने क्या कर दिया? एक नंबर की गधी हूँ मैं।
ओवरस्मार्ट बनने के चक्कर में अपनी ही बैंड बजवा ली।
‘घबराओ मत,’ अभय सर की शांत आवाज़ सुनाई दी।
मैंने उनकी ओर देखा।
वो फोन के तार की ओर इशारा कर रहे थे। तार रिसीवर से निकला पड़ा था।
‘मतलब...!’ मैं बोली।
’मतलब यह कि कोई भी आवाज़ वहाँ नहीं गयी।‘
मेरी जान में जान आई।
‘तुम पागल हो। मैं पागल नहीं हूँ। दो मिनट के मज़े में कबाड़ा नहीं कराना चाहिए,’ सर अब डांटने वाले मूड में आ
गए थे। उनका लोलिपोप बेचारा सिकुड़ा हुआ बैठा था। उसकी क्या गलती थी जो इतना सहमा
हुआ था!
‘सर, आप ग्रेट हो।‘ मैंने आँखें मटकाते हुये कहा।
‘वो सब तो ठीक है। जरा पीछे मुड़ना,’ उन्होने कहा।
‘क्यों,’ यह कहते हुये मैं पीछे मुड़ गई।
करीब तीन सेकंड तक
मेरे गोरे नितंबों को निहारने के बाद उन्होने कहा, ‘अच्छा है। कल इसकी बारी है।‘
‘सर, आप बड़े शरारती हो,’ यह कहकर मैं उन पर कूद गयी, और उन्हें ज़ोर से चूम लिया।
फिर मन ही मन सोचा, ‘साले, मेरे पिछवाड़े का उदघाटन भी
तू ही करेगा? इतनी अच्छी किस्मत नहीं है तेरी। मारने की छोड़, चाटने भी नहीं दूँगी।‘
इसके बाद मुंह-हाथ
धोकर, अगले दिन आने का वादा
करके मैं निकल गई। सर की किस्मत मेरे साथ फिर कब चमकेगी; या फिर चमकेगी भी या नहीं, इन सवालों का उत्तर मेरे पास
नहीं था। पर इतना पक्का था। अगर अगली बार उनको लेने का मूड बना तो कहीं और लूँगी।
एक ही बिस्तर पर दो बार करने का आइडिया मुझे टांगों के बीच गीला नहीं करता।
ये तो था मेरा फ़र्स्ट
टाइम। इसके बाद मैंने न जाने कितनों को लिया। इंगलिश में मेरे जैसी लड़की को nymphomaniac कहते हैं। अच्छा है; लंबे-चौड़े नाम मुझे अच्छे
लगते हैं।
अभी मैं आपको यह कहानी
सुना रही हूँ, और अपने केबिन से देखती हूँ कि नया मैनेजमेंट ट्रेनी एक दूसरी ट्रेनी से
फ्लर्ट कर रहा है। ऑफिस में कहते हैं, दोनों कॉलेज के
समय से एक-दूसरे को डेट मार रहे हैं। छह फीट का यह लौंडा अभी मेरे अंडर काम कर रहा
है, जल्द ही मेरे अंदर
आयेगा। सोचती हूँ, इसको ले लूँ। आज ही लूँगी। पर कहाँ लूँगी, यह मैं कौफी के इस मग को खत्म करने के बाद तय
करूंगी।