Thursday 26 May 2016

आज किसको लूँ?


लोगों की भाषा मेरी समझ में नहीं आती। जब एक लड़का और लड़की एक-दूसरे को ठोकते हैं तो बोलते हैं लड़के ने लिया और लड़की ने दिया। इसको उल्टा क्यों नहीं बोलते? मतलब कि लड़की ने लिया और लड़के ने दिया। क्यों, लड़की नहीं ले सकती क्या? लड़की का काम सिर्फ देना है? मुझे देख लो। मैं लेती हूँ। जो लड़का पसंद आया, उसके पास जाती हूँ, उसे पटाती हूँ, और उसे तब तक लेती हूँ जब तक उससे बोर न हो जाऊँ या फिर दूसरा कोई नया न मिल जाये। अब लड़के की किस्मत है कि मैं उससे दो मिनट में बोर होती हूँ या फिर दो साल में।  पर लड़का मुझसे बोर नहीं होता। होगा भी कैसे? मैं इतने तरीकों से लेना जानती हूँ कि वो हर बार सोचता है कि उसे इस बार नया क्या मिलेगा? मैं किसी लड़के को बांधने की कोशिश नहीं करती। उसे पूरी आज़ादी देती हूँ कि वो किसी और से मिले या फिर किसी और को दे। मुझे सिर्फ इससे मतलब है कि जब वो मेरे साथ है तो क्या कर रहा है। ये आज़ादी ही उसकी बेड़ियाँ बन जाती है। जब चाहती हूँ, मेरे पास खिंचा चला आता है। वो चाहता है मैं उस पर हक़ जताऊँ, उसके न होने पर नाराज़ हो जाऊँ और उसे miss करूँ। उसकी यही ख़्वाहिश उसे मुझसे जोड़े रहती है। न उसकी ख़्वाहिश पूरी होती है, न उसकी बेड़ियाँ टूटती हैं।
अठारह की थी जब मैंने पहली बार किसी को लिया था। अभय बिन्दु नाम था, और वो मुझे ट्यूशन पढ़ाने आता था। उम्र में मेरा डबल था। मुझे उसके पढ़ाने का तरीका पसंद आता था। वो बड़े प्यार से कोई बात समझाता था। जब भी वो मुझे कुछ पढ़ा रहा होता, मेरी निर्दोष आँखों में उसकी बिन कपड़ों की तस्वीरें आने लगती थीं। मैं अपने मन के स्कीन पर देखती थी कि मैं उसे उसके बेड रूम में लिटाकर उसे अच्छे से ठोक रही हूँ, और उसके बीवी चाय के कप लेकर हमारे फ्री होने का इंतज़ार कर रही है। उस दिन मुझे पता चला कि मुझे सिंगल लड़के कतई पसंद नहीं हैं। मुझे वैसे लड़के पसंद हैं जिन्हें और कोई ले रही है, चाहे वो शादीशुदा हो या फिर किसी रिश्ते में हो। दूसरों की प्लेट की रसमलाई मुझे ज़्यादा मीठी लगती है, और अपने प्लेट की रसमलाई को छूने का भी दिल नहीं करता।
तो एक दिन मैंने सोच लिया कि अभय बिन्दु ही वो पहला शख्स होगा जो मेरे अंदर जाएगा। वैसे मैं उसे अपने घर में भी ले सकती थी, पर उसमें वो मज़ा नहीं आता। मैं चाहती थी कि उसे उसके घर में उस बिस्तर पर लूँ जिस पर उसकी बीवी उसे लेती है। मैं उस दिन का इंतज़ार करने लगी जब इस शुभ काम का मुहूर्त आयेगा। गर्मियों के मौसम में पढ़ाते समय उसने मेरी माँ को बताया कि उसकी बीवी अपने बच्चे को लेकर एक महीने के लिए मायके गयी हुई है। मेरे कान खड़े हो गए, और जांघों के बीच हल्की सी सुरसुरी सी फैल गयी। ये मेरा पहली बार होगा। इसलिए थोड़ा डर भी लग रहा था, और मन में उत्तेजना भी हो रही थी। अपने मन में तो मैं उसे कई बार ठोक चुकी थी, पर वास्तविक ज़िंदगी में ठोकूँगी तो कैसा महसूस होगा, यह सोच-सोचकर मेरा चेहरा लाल हुआ जा रहा था।
करीब दस साल पहले मैं बिलकुल क्यूट बच्ची जैसी दिखती थी। वैसे मेरी हाइट पाँच फीट पाँच इंच हो गई थी, और मेरे मम्मे भी बड़े और सुडौल हो गए थे, पर मुझे देखकर ऐसा लगता था जैसे नर्सरी की बच्ची को खींचकर लंबा कर दिया गया हो। मैं  बोलती भी छोटे बच्चों जैसी थी। मुझे देखकर कोई भी नहीं सोच सकता था कि मैं अपने ख्यालों में बाकियों से दस साल आगे थी। मेरे मन में जो-जो इच्छाएँ जगती थीं, वो बिस्तर के किसी अनुभवी खिलाड़ी के मन में ही जगती होंगीं। एक लड़की के शरीर में मैं एक मर्द थी। और मुझे अपनी पसंद के मर्द अपने खिलौने जैसे लगते थे। अगले दिन मैं अपने पहले खिलौने से खेलने वाली थी।
मैंने पूरी तैयारी की। सुबह नहाते समय अपने पैरों के बीच के बालों काटकर छोटा किया। मैंने सुना था मर्दों को छोटे बाल ज़्यादा अच्छे लगते हैं। ब्लू फिल्मों में तो लड़कियां शेव कर लेती हैं। मेरे पास एक पत्रिका थी जिसमें कई लड़कियों ने बताया था कि फ़र्स्ट टाइम में क्या-क्या दिक्कतें आती हैं। मैं उसके एक-एक पन्ने को चाट गयी। मैंने मन ही मन प्लान बनाया कि कैसे उसके घर जाऊँगी और उसे तैयार करूंगी।
दोपहर तीन बजे मैंने उसे अपने घर से फोन किया। उस समय तो लैंड्लाइन फोन ही होता था। फोन पर मैंने उसे कहा कि मैं उसके घर के बगल में एक सहेली के यहाँ आई हुई हूँ, और एक सवाल पूछने उसके घर आना था। वो मुझे छोटी बच्ची ही समझता था। वो मान गया।
आधे घंटे के अंदर मैं उसके साथ सोफ़े पर बैठकर मैथ का एक सवाल डिस्कस कर रही थी। मैंने स्कर्ट और टी-शर्ट पहन रखी थी। वो सामने सोफ़े पर बैठा था, और मैं एक चेयर पर बैठी थी। वो बातें कर रहा था, और मैं मन ही मन सोचे जा रही थी कि आज उसके साथ क्या-क्या करूंगी। मन तो कर रहा था कि उस पर झपट जाऊँ और सोफ़े पर ही उसका क्रियाकर्म कर डालूँ। मेरी नज़र बार-बार उसकी टांगों के बीच जा रही थी। वहाँ कोई उभार नहीं था। उसका लौलीपोप सोया पड़ा था। उसके बारे में सोचने मात्र से मेरी योनि गीली हो रही थी। बहुत ठरकी हूँ मैं। किसी को क्या पता!
अब अगला कदम उठाने की बारी आ गयी थी। कल्पना को यथार्थ में बदलने का समय आ गया था। मैंने जान-बूझकर किताब के पन्ने पलटते समय उसके हाथों को छूया, पर उसे कोई हिंट नहीं मिला। मैं काफी ढीली-ढाली टी-शर्ट पहनकर आई थी। अपनी गर्दन खुजाने का बहाने मैंने अपनी शर्ट के गले को नीचे खींच दिया ताकि मैं जब भी झुकूँ, मेरे मम्मों का ऊपरी हिस्सा उसे दिख जाये। फिर मैं झुककर बैठ गयी मानो मुझे मैथ्स के सवाल हल करने में बड़ा मज़ा आता है। मैं इंतज़ार कर रही थी कि कब उसकी नज़र मेरे मम्मों पर पड़े, फिर मैं आगे बढ़ूँ। फिर वही हुआ जो मैंने सोचा था। उसकी नज़र मेरे गोरे मम्मों के उभारों पर पड़ी, और फेविकोल की तरह चिपक गई। मैं आँखें आधी बंद करके कुछ सोचने का नाटक करने लगी, और मैंने उसे पूरा मौका दिया कि अपनी नज़रों से मेरे मम्मों को दबाये और चूसे। उसने करीब दस सेकंड तक मज़े लिए, फिर जबर्दस्ती किताब पर नज़रें ले गया।
मैंने सोचा बाकी लोगों की तरह वक़्त बर्बाद करने में क्या फायदा है। मैं अगले ही पल जाकर सोफ़े पर उसके बगल में बैठ गई। वो घबरा सा गया। उसे लगा उसकी चोरी पकड़ी गई। मैंने उसकी जांघ पर हाथ रखा और उसकी आँखों में आँखें डाल दी। मैं पिछले जन्म में ज़रूर चंगेज़ खान थी। उसका नाम तो सुना ही होगा। कहते हैं, उसने अपनी ज़िंदगी में हजारों लड़कियों का रेप किया था। हर रोज़ सात लड़कियां उसका खुराक थीं। मैं रेप के खिलाफ हूँ। लेकिन हर रोज सात रसगुल्लों वाला ख्याल अच्छा है।
किस करो न,’ मैंने उससे कहा।
क्या! वो घबरा गया।
बिना किस किए मुझे ठोकोगे? बड़े कमीने हो! मुझे उसकी खराब हालत देखकर अच्छा लग रहा था। मेमने जैसा दिख रहा था।
क्या कह रही हो तुम?’
देखो, सर! मैं यहाँ तुम्हारे घर पढ़ने नहीं आई हूँ। तुम्हें लेने आई हूँ।
लेकिन तुम तो अभी बच्ची हो। ये सब क्या?’
बच्ची होगी आपकी बीवी। मेरा फ़र्स्ट टाइम है। टाइम मत खराब करो। घर में कंडोम है न?’
हाँ, है तो। लेकिन मैं शादीशुदा हूँ। और तुम्हारी उम्र अभी बहुत कम है।
साले की फट रही थी। ये मेरी क्या फाड़ेगा!
शादीशुदा हो तो क्या हुआ! मुझे दे नहीं सकते? देखो तुम्हारा खड़ा हो गया है।
उसकी नज़र अपने लौलीपोप पर गई। उसने अंडरवियर नहीं पहन रखा था। उसका लौलीपोप जहाज के मस्तूल की तरह खड़ा हो गया था, और मेरी ओर निशाना लगाए हुये था। उसे देखकर मेरे मुंह में लार भर आई। साला, अभी इसकी हेकड़ी निकालती हूँ। मेरे गर्मी ने इसे पिघला न दिया, तब बोलना।
देखो, ये सब रहने दो। फालतू में हम दोनों फंस जाएँगे। वो सहमी आवाज़ में बोला।
फँसोगे तो तब जब तुम मुझे दोगे नहीं। मैंने सोचा ये ऐसे नहीं मानेगा।
क्या मतलब?’
बीवी घर पे है नहीं। और मुझे पढ़ने के लिए बुलाते हो। लोगों को पता चलेगा तो पता नहीं क्या होगा। मैंने आँखों को बच्चों को मटकाते हुये कहा। उसे पता नहीं चला कि मैं धमका रही हूँ या मज़ाक कर रही हूँ।
पर तुम तो खुद आई थी! उसने कहा।
मज़ाक कर रही हूँ, सर! आप का मूड नहीं है तो कोई बात नहीं। मैं चलती हूँ। आप कल घर पे पढ़ाने आ जाना। यह कहकर मैं उठ खड़ी हुई। मैं उसके साथ जबर्दस्ती नहीं करना चाहती थी। जो भी हो, बंदा शरीफ था। मैं अपने पहले अनुभव के लिए किसी का गलत फायदा नहीं उठाना चाहती थी।
मैं अपनी किताबें समेटने लगी, तभी उसने अपने हाथ से मेरी कलाई हल्के से पकड़ ली। मैंने उसके चेहरे को देखा। किताबों को हटाया, और उसकी जांघों पर बैठ गई, फिर बड़े प्यार से उसके मुंह में अपना मुंह डाला, आँखें बंद की, और उसकी जीभ चूसने लगी।
उसे चूमने से ज़्यादा मज़ा किसी और चीज से आ रहा था। उसका खड़ा लोलिपोप मेरे नितंबों के नीचे दबा हुआ था, और बिलबिलाए तेंदुए की तरह ऊपर उठना चाह रहा था। उसके ठोसपन और उसकी रगड़ से मेरे नितंबों को कितना मज़ा आ रहा था, बताना मुश्किल है। वो बार-बार मेरे नितंबों की दरार में कोई रास्ता खोज रहे थे, और मुझे उन पर दया आ रही थी। मैं एक सेकंड के लिए उठ खड़ी हुई, अपनी स्कर्ट को उठाया और फिर अपनी नंगी जांघों के बल अपने अभय सर पर बैठ गई। लेकिन अब सर में भी थोड़ा कोन्फ़िडेंस आ गया था। उन्होने मुझे हल्का सा उठाया, अपने पाजामे को हल्का सा सरकाया, और अपने लोलिपोप  को मेरी नंगी जांघों को चूमने की आज़ादी दे दी। बता नहीं सकती मुझे कैसा लग रहा था। अभी तक मैंने उनके लोलिपोप को देखा नहीं था। पर उसका तपता खंभा अब मेरी नर्म जांघों से रगड़ खा रहा था तो मैं बदहवास ही होने लगी।
चलो, बेडरूम ले चलो। मैंने ऑर्डर दिया।
उसने बिना एक पल की देर किए मुझे उठाया, और अपने बेडरूम में बिस्तर पर पटक दिया। सामने दीवार पर उसकी बीवी और बच्चे की बड़ी तस्वीर हमें घूर रही थी। बच्चों को ये सब नहीं देखना चाहिए, नहीं तो वो मेरे जैसा बन जाएँगे। और मैं नहीं चाहती कि मेरे जैसे लोग हर गली-मुहल्ले में मिलें। मेरे जैसे लोग हजारों में एक हों, तभी लुत्फ आता है। हाँ, उसकी बीवी मुझे देखे, यह आइडिया अच्छा था। उसकी माल को उसी के सामने लेने का जो मज़ा है, वो मेरे जैसी कमीनी ही समझ सकती है। और कमीनेपन में क्या मज़ा है, वो मैं ही समझ सकती हूँ।
अभय सर मुझ पर चढ़ना चाहते थे। पर मैंने उन्हें बड़े प्यार से बिस्तर पर लिटाया, और एक झन्नाटेदार थप्पड़ गाल पे दे मारा। वो थप्पड़ खाकर दर्द से बिलबिला उठे।
क्यों! अच्छा नहीं लगा?’ मैंने व्यंग्य वाली मुस्कान के साथ पूछा।
उस बेचारे ने पाँच साल के बच्चे की तरह  सिर के इशारे में हिला दिया।
मैंने एक बार मारा तो अच्छा नहीं लगा? अभी आधे घंटे में आप मेरी जहां चाहोगे, वहाँ मारोगे। तब मुझे अच्छा लगेगा?’ मैंने उसके होठों को हल्के से चूमकर कहा।
अभय सर मेरा इशारा समझ गए। वो मुस्कुराए बिना नहीं रह पाये।
बेचारे को मुस्कुराने का पूरा टाइम भी नहीं मिला था कि मैंने उनके पाजामे को खींचकर जमीन पर फेंक दिया। उनका मोटा काला लोलिपोप हवा में लहरा रहा था। आस-पास घनी घास थी, और नीचे दो नींबू मेरी भूख बढ़ा रहे थे। मैंने आँखें बंद कीं, और उनके लोलिपोप को सूंघने लगी। फिर जीभ निकालकर उसे छू लिया। मेरा पूरा शरीर आनंद से सिहर उठा। मैंने उनकी टांगों को हल्का सा फैलाया, और नींबुओं को मुंह में डालकर उन्हें अंदर ही अंदर जीभ से मसाज देने लगी। फिर उनका लोलिपोप सामने से पूरा मुंह में ले लिया। ये मेरा पहली बार था। न मुझे विश्वास हो रहा था, न अभय सर ऐसा सोच रहा होगा। इतना आत्म-विश्वास तो किसी पुराने खिलाड़ी में ही हो सकता है। शायद पिछले जन्म में मैंने काफी मज़े लूटे थे, और उसी का अनुभव अभी काम आ रहा था। कहते हैं, कुछ भी सीखा कभी बेकार नहीं जाता।
दस मिनट अच्छे से चूसने के बाद मैंने सोचा अब इस साले लोलिपोप को मोम की तरह गलाने का वक़्त आ गया है। आप पूछेंगे, उन दस मिनटों में बेचारे अभय सर क्या कर रहे थे। वो बार-बार उठने की कोशिश कर रहे थे, और मैं उन्हें प्यार से धक्का मारकर गिरा रही थी।
उन दस मिनटों में लोलिपोप अच्छे से गीला हो गया था, और पागल अजगर की तरह मुझे देख मुंह फुफकार रहा था। साला, कुत्ता! इसकी तो मैं!! रुक बेनचोद।
मैंने अपनी स्कर्ट निकालकर नीचे फेंकी। अपनी लाल पैंटी उतारकर अभय सर के मुंह पे दे मारी। उन्हें भी तो चूसने के लिए कुछ मिलना चाहिए। बेचारे तब से भूखे-प्यासे अपनी लिवा रहे हैं।
फिर मैं घोड़े पर चढ़ने की स्टाइल में उनके लोलिपोप के पास बैठ गई, और अपने गुलाब को उस पर मद्धिम-मद्धिम रगड़ने लगी। अपने गुलाब की उससे दोस्ती करा रही थी ताकि वो उसे अंदर लेते समय ज़्यादा नखरे न दिखाये। आधे मिनट की रगड़ के बाद मेरा गुलाब रस से भर गया। उस गुलाब से आनंद की अमरलता निकली जो अंदर ही अंदर मेरे नसों के रास्ते पूरे  शरीर में फैल गई। अभय सर ने मेरी बाहों को जोड़ से पकड़ लिया।
सर, अपनी बीवी को फोन लगाओ। मैंने कहा।
अभी! लेकिन क्यों?’ उन्होने पूछा।
फोन लगाओ। और जो मन करे, बात करो। जब बात करना शुरू करोगे तब मैं तुम्हारे हीरो को अंदर लूँगी। और जब तक बात करते रहोगे, उसे अंदर रखूंगी। अब तुम सोच लो, कितनी देर बात करोगे। मैंने उन्हें साफ शब्दों में बताया।
बेचारे की समझ में नहीं आ रहा था कि लड़की चाहती क्या है। पर मजबूर था बेचारा। बिस्तर के बगल में ही फोन रखा था। उसने नंबर डायल किया।
फोन स्पीकर पर डाल दो। मैंने आदेश दिया।
तुम कुछ बोलोगी तो नहीं?’ उसने झिझकते हुये कहा।
पागल समझ रखा है? मैं आपकी मारने आई हूँ, दोनों की मरवाने नहीं। मैंने उस गधे के गाल पर एक चपत लगा दी।
फोन रिंग होने लगा। उधर से एक औरत ने फोन उठाया। अभय सर की सास थी।
मम्मी, मैं अभय बोल रहा हूँ। नूतन है क्या?’ सर ने कहा।
हाँ दामादजी, अभी बुलाती हूँ। नूतन! मेरी सौत की मम्मी ने पुकारा।
हाँ अभय, कैसे हो?’ नूतन ने कहा।
इसी के साथ मैंने अभय सर के लोलिपोप के मुंह को अपने गुलाब के छेद पर टिकाया, और अंदर ले लिया। वो सट से आधा इंच अंदर चला गया, और मेरे मुंह से चीख निकलते-निकलते रह गई। दोनों की जान बच गयी।
पर उस बेचारे के मुंह से हल्की सी सिसकारी निकल ही गई।
अभय, क्या हुआ? तुम ठीक तो हो?’ उसकी प्यारी पत्नी के मुंह से चिंता भारी आवाज़ निकली। उस बेचारी को क्या पता कि उसका पति कितने मज़े में है। अपनी ढीली-ढाली बोरिंग बीवी के बदले अपनी चिकनी स्टूडेंट को दे रहा है। कुछ कमीनों की किस्मत छप्पड़ फाड़कर नहीं, गांड फाड़कर आती है।
नहीं, नहीं। बस ठीक हूँ, बस हल्का सा सिर दर्द था। किसी तरह उसने अपनी आवाज़ को नॉर्मल करते हुये कहा।
मैंने उसके लोलिपोप को बाहर निकाला,  उसके निचले हिस्से को अपने अंगूठे और पहली उंगली के रिंग में पकड़ा और उसके मुंह को फिर अपने गुलाब में हल्का सा डाला, और ज़ोर से अंदर ले लिया। दर्द के मारे मेरा शरीर कांप गया। लगा कि अपनी चीख से घर की दीवारें फाड़ दूँगी। मेरी जान निकलकर गले में अटक गई। अब मैं किसी भी दर्द के लिए तैयार थी।
पर बेचारे अभय सर ज़ब्त नहीं कर पाये। उनके मुंह से फिर चीत्कार निकल गई। इतनी ज़्यादा खुशी की आदत उन्हें थी नहीं।
अभय, तुम बताओ, क्या हुआ है तुम्हें? मैं कल आ रही हूँ। मुझे लगता है तुम्हारी तबीयत बहुत खराब है। नूतन की आवाज़ में परेशानी थी। उसकी परेशानी देखकर मैं अपना दर्द एक पल के लिए भूल गई, और मेरी हंसी आते-आते रुक गई।
नहीं डार्लिंग। मैं ठीक हूँ। मैंने दवा ले ली है। आधे घंटे में ठीक हो जाएगा। तुम बताओ। वहाँ....
बेचारे अभय सर अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाये थे कि मैंने उनका लोलिपोप बाहर निकाला और तेज़ी से फिर अंदर ले लिया। इस बार मैंने उसे पूरा अंदर लिया ताकि उसका मुंह अंदर जाकर मेरे कलेजे को फाड़ डाले। दर्द इस बार भी हुआ, पर मज़ा चौगुना हो गया था।
फिर मैं भूल गई कि मेरा माल अपनी बीवी से क्या बातें कर रहा है। मैंने आँखें बंद कर ली थीं, और अंदर-बाहर, अंदर-बाहर उसके लोलिपोप को अपने गुलाब में लिए जा रही थी। मेरे दोनों हाथ उसके कंधों को जकड़े हुये थे, मेरी दोनों टांगें उसकी कमर के दोनों ओर थीं, और मेरा कसा हुआ गुलाब उसके लोलिपोप को चूसकर खत्म करने पर उतारू था। पर मुझे इतना ध्यान था कि मेरे मुंह से आवाज़ नहीं निकलनी चाहिए थी।
कुछ मिनटों बाद मेरे गुलाब के अंदर से गरम लावा निकला और इस बार मैं चीख पड़ी। अंदर से जैसे कोई जिन्न निकला और मेरे नसों को फाड़ते हुये आज़ाद हो गया। मैं चिल्लाई, आह!
साथ ही सर का लोलिपोप का मुंह पिघल गया और उसका पिघला क्रीम मेरे लावे से जा मिला। माँ कसम, मज़ा आ गया।
आधे मिनट की इस मीठी मौत के बाद मेरी आँखें खुली तो अभय सर सामने केले के छिलके की तरह बिखरे पड़े थे, उनके हाथ में अभी भी फोन था। मतलब कि हमारी चीख उनकी बीवी के कानों में पड़ गई थी। यह सोचकर मेरे होश उड़ गए। अब क्या होगा? मैंने तो मस्ती बढ़ाने के लिए ये गेम खेला था, पर ये तो उल्टा पड़ गया।
मैं जल्दी से बिस्तर से अलग हुई और अपने कपड़े उठाने लगी। उनकी बीवी देर न सवेर ज़रूर पता लगा लेगी कि वो लड़की कौन थी। फिर मेरे घर बात पहुंचेगी। सत्यानाश हो जाएगा। ये मैंने क्या कर दिया? एक नंबर की गधी हूँ मैं। ओवरस्मार्ट बनने के चक्कर में अपनी ही बैंड बजवा ली।
घबराओ मत,’ अभय सर की शांत आवाज़ सुनाई दी।
मैंने उनकी ओर देखा। वो फोन के तार की ओर इशारा कर रहे थे। तार रिसीवर से निकला पड़ा था।
मतलब...! मैं बोली।
मतलब यह कि कोई भी आवाज़ वहाँ नहीं गयी।
मेरी जान में जान आई।
तुम पागल हो। मैं पागल नहीं हूँ। दो मिनट के मज़े में कबाड़ा नहीं कराना चाहिए,’ सर अब डांटने वाले मूड में आ गए थे। उनका लोलिपोप बेचारा सिकुड़ा हुआ बैठा था। उसकी क्या गलती थी जो इतना सहमा हुआ था!
सर, आप ग्रेट हो। मैंने आँखें मटकाते हुये कहा।
वो सब तो ठीक है। जरा पीछे मुड़ना,’ उन्होने कहा।
क्यों,’ यह कहते हुये मैं पीछे मुड़ गई।
करीब तीन सेकंड तक मेरे गोरे नितंबों को निहारने के बाद उन्होने कहा, अच्छा है। कल इसकी बारी है।
सर, आप बड़े शरारती हो,’ यह कहकर मैं उन पर कूद गयी, और उन्हें ज़ोर से चूम लिया।
फिर मन ही मन सोचा, साले, मेरे पिछवाड़े का उदघाटन भी तू ही करेगा? इतनी अच्छी किस्मत नहीं है तेरी। मारने की छोड़, चाटने भी नहीं दूँगी।
इसके बाद मुंह-हाथ धोकर, अगले दिन आने का वादा करके मैं निकल गई। सर की किस्मत मेरे साथ फिर कब चमकेगी; या फिर चमकेगी भी या नहीं, इन सवालों का उत्तर मेरे पास नहीं था। पर इतना पक्का था। अगर अगली बार उनको लेने का मूड बना तो कहीं और लूँगी। एक ही बिस्तर पर दो बार करने का आइडिया मुझे टांगों के बीच गीला नहीं करता।
ये तो था मेरा फ़र्स्ट टाइम। इसके बाद मैंने न जाने कितनों को लिया। इंगलिश में मेरे जैसी लड़की को nymphomaniac कहते हैं। अच्छा है; लंबे-चौड़े नाम मुझे अच्छे लगते हैं।
अभी मैं आपको यह कहानी सुना रही हूँ, और अपने केबिन से देखती हूँ कि नया मैनेजमेंट ट्रेनी एक दूसरी ट्रेनी से फ्लर्ट कर रहा है। ऑफिस में कहते हैं, दोनों  कॉलेज के समय से एक-दूसरे को डेट मार रहे हैं। छह फीट का यह लौंडा अभी मेरे अंडर काम कर रहा है, जल्द ही मेरे अंदर आयेगा। सोचती हूँ, इसको ले लूँ। आज ही लूँगी। पर कहाँ लूँगी, यह मैं कौफी के इस मग को खत्म करने के बाद तय करूंगी।

Saturday 7 May 2016

आखिरी दिन, पहला चुंबन


ज़िंदगी एक ऐसी चिड़िया की तरह है जो कभी किसी शाखा पर आराम नहीं करती, कभी घोंसला नहीं बनाती। यह तो बस उड़ती चली जाती है। विक्रांत अपना सामान समेटते समय यह महसूस कर रहा था। पाँच साल पहले वो इस शहर में कांतिदास महाविद्यालय में दाखिला लेने पहली बार आया था। इन पाँच सालों के एक-एक दिन का उसने पूरा स्वाद चखा था। जमकर पढ़ाई की थी, जमकर दोस्त बनाए थे, और जमकर सखियाँ बनाई थीं।

यहाँ लड़कियां थोड़ी उन्मुक्त स्वभाव की थीं, और विक्रांत में कुछ ऐसा खास था कि वो उसकी ओर खिंची चली आती थीं। विक्रांत देखने में कुछ खास नहीं था, लेकिन उसके चेहरे पर एक शरीफाना अंदाज़ था। लड़कियां उसके साथ काफी सहज और सुरक्षित महसूस करती थीं। उसके सामने मिनट भर में ऐसे खुल जाती थीं जैसे वो एक-दूसरे को सालों से जानते हों।

एक बार विक्रांत अपनी दोस्त शैलजा के साथ मार्केट में घूम रहा था। तभी बायोलॉजी डिपार्टमेंट की सुकन्या उनसे आ टकराई। सुकन्या और शैलजा में थोड़ी-बहुत जान-पहचान थी, इसलिए हाय-हैलो हुई। फिर विक्रांत और सुकन्या में बात शुरू हो गई। दोनों में लगभग दस मिनट तक यह चर्चा होती रही कि कॉलेज की कैंटीन में अगर कॉफी सर्व करना शुरू करें तो मज़ा आ जाये। शैलजा उन दोनों को बड़ी-बड़ी आँखों से देखती रही। सुकन्या के जाने के बाद शैलजा ने विक्रांत से पूछा, यार, मुझे पता नहीं था तुम सुकन्या को जानते हो।

विक्रांत ने भौंहें सिकोडकर कहा, मैं उसे नहीं जानता। एक-दो बार आँखें मिली हैं। पर मैंने उससे पहली बार बात की है।

शैलजा के मुंह से हल्की सी चीख सी निकाल गयी, ‘What! तुम दोनों पहली बार बात कर रहे थे। लग तो ऐसे रहा था जैसे कई बार मिल चुके हो।

विक्रांत ने कुछ जवाब नहीं दिया। शैलजा ने उसे ऊपर से नीचे तक निहारा। लड़कियां एक पल में पहचान जाती हैं कि किन लड़कों का एटैन्शन पाने के लिए उन्हें बाकी लड़कियों से काफी कॉम्पटिशन करना पड़ेगा। विक्रांत वैसे गिने-चुने लड़कों में से था जिन्हें लड़कियों के पास जाना नहीं पड़ता; लड़कियां उनके पास कोई न कोई बहाना  बनाकर आती हैं।

आश्चर्य की बात थी कि विक्रांत में ऐसा कुछ दिखता नहीं था जिसके कारण लड़कियां उसके पास आयें। दिखने में साधारण था, किताबों में डूबा रहता था, लड़कियों पर एक पैसा खर्च नहीं करता था, उसके पास बाइक या गिटार भी नहीं था जो लड़कियां पटाने का अद्भुत अस्त्र माना जाता है। शैलजा खुद भी नहीं समझ पाती थी कि वो उसे इतना पसंद क्यों करती है। वो खुद देखने में काफी अच्छी थी और उसके पीछे पड़ने वाले लड़कों की कतार काफी लंबी थी। अपने बैच की सबसे अच्छी स्टूडेंट थी। उसके साथ कोई लड़का थोड़ा वक़्त बिता ले तो उस लड़के की अपने दोस्तों में इज्ज़त बढ़ जाती थी। लेकिन विक्रांत के साथ मामला उल्टा था। विक्रांत की अच्छी दोस्त होने के कारण लड़कियां उसे जलती निगाहों से देखती थीं, और हॉस्टल में गप मारते समय किसी न किसी बहाने से उसके बारे में कुछ न कुछ जरूर पूछती थीं।

शैलजा को ये भी पता था कि विक्रांत के फ्लॅट में आने वाली लड़कियां उससे सिर्फ गप मारने नहीं आतीं। जिन लड़कियों के पीछे चक्कर लगाते हुये लड़के हॉस्टल के आस-पास मँडराते रहे थे, वो ही लड़कियां कुछ पूछने या पढ़ाई के बहाने विक्रांत के फ्लॅट में अकेले आना चाहती थीं। एक वाकया तो उसने अपनी आँखों से देखा था। विक्रांत की एक साल जूनियर स्वाती उससे बात कर रही थी, विक्रांत, आप हर बार मुझे टाल जाते हो। अगर मैं इस बार फेल हुई तो डिपार्टमेंट हेड को बोल दूँगी कि आप इसके लिए ज़िम्मेवार हो।

विक्रांत ने मुस्कुराकर कहा, अरे बाबा! मुझे क्यों फांसी पर चढ़ाना चाहती हो? यहाँ जब भी क्लास खाली हो, डिपार्टमेंट में मुझसे वो चैप्टर आकर पढ़ लो।

स्वाती ने नखरे दिखाये, यहाँ बहुत शोरगुल होता है। मेरा हॉस्टल आपके फ्लॅट के बगल में ही है। शाम में आ जाऊँ? आपको प्रोब्लेम तो नहीं है?’

विक्रांत ने कहा, नहीं, प्रोब्लेम क्यों होगी? आ जाओ। चाहो तो किसी क्लासमेट को भी ले आओ।

स्वाती ऐसे खुश हुई जैसे किसी भूखी को चिकन पिज्जा मिल गया हो। उसकी खुशी देखकर शैलजा चिढ़ सी गई। उसे इस बात में बिलकुल भी संदेह नहीं था कि वो कमीनी विक्रांत से सिर्फ पढ़ाई नहीं करेगी। आजकल लड़कियां कितनी फ्रैंक हो गई हैं। या फिर ये कहो, वो विक्रांत के साथ इतना फ्रैंक महसूस करती हैं। वो खुद भी तो विक्रांत के साथ पूरी फ्रैंक है। इतनी फ्रैंक है कि बिना किसी रिश्ते के उसके साथ न जाने कितनी बार अपने-आपको उसके हवाले कर चुकी है। इसके पहले भी वो दो लड़कों के साथ शारीरिक रूप से जुड़ चुकी थी, लेकिन वो दोनों उसे डेट कर रहे थे। कभी-कभी उसे लगता था कि वो सेक्स के माध्यम से उसे अपनी ओर आकर्षित करना चाह रही है। लेकिन उसे इतना समझ तो आ गया था कि विक्रांत सेक्स को एंजॉय करता है लेकिन सेक्स उसकी ज़रूरत नहीं है। कोई भी लड़की सेक्स का चारा डालकर उसे अपने बस में नहीं कर सकती।

ऐसी न जाने कितनी शैलजा और सुकन्याएं विक्रांत के साथ वक़्त बिता चुकी थीं। आलम यह था कि कई लड़के अपनी गर्लफ्रेंड को विक्रांत से मिलाते नहीं थे। विक्रांत के बारे में कई उल्टी-सीधी बातें उन्हें बताते थे। विक्रांत का कैरक्टर ठीक नहीं है; वो लड्कीबाज़ है, सेक्स का भूखा है; और भी पता नहीं क्या क्या! पर ये बातें सुनकर उन गर्लफ्रेंड्स में जिज्ञासा जाग जाती थी। और वो वास्तव में वैसा होता तो यूनिवरसिटी की खूबसूरत लड़कियां हर शाम उसके साथ कॉफी नहीं पी रही होतीं, उसके यहाँ चौपाल बिठाने नहीं जातीं। आश्चर्य की बात यह कि आज तक किसी लड़की ने उसके बारे में कभी नेगेटिव नहीं कहा। सिर्फ लड़कों को ही चिढ़ मचती थी।

वैसे भी जिस लड़की के साथ एक भी खूबसूरत लड़की हो, उसमें बाकी लड़कियों की दिलचस्पी अपने-आप बढ़ जाती है। यही सिद्धान्त विक्रांत के साथ काम करता था। उसके फ्रेंड सर्कल में क्यूट लड़कियों की संख्या जितनी बढ़ती गई, बाकी लड़कियों की दिलचस्पी उसमें और भी गहराती गयी।

पर आज यह सुनहरा चैप्टर खत्म हो रहा था। कल विक्रांत इस कॉलेज को छोडकर हमेशा हमेशा के लिए जा रहा था। उसका एक टॉप एमबीए कॉलेज में चयन हो गया था, और उसे एक हफ्ते के अंदर जॉइन करना था। उसके बाद दो साल तक तो उसे सांस लेने की भी फुर्सत नहीं होगी। उसने अपने काफी सारे सामान की पैकिंग कर ली थी। किताबों की पैकिंग करनी बाकी थी।

तभी दरवाजे पर हल्की सी आवाज़ आई विक्रांत। विक्रांत ने दरवाजा खोला। वहाँ कृति शर्मा खड़ी थी।

अरे, कृति! तुम यहाँ?’ विक्रांत ने कहा।

हाँ, तुम्हारी एक बुक मेरे पास बहुत दिनों से थी। मैंने सुना कल जा रहे हो। तुम्हें तो याद भी नहीं होगा कि तुमने मुझे कोई बुक दी थी।

दो सेकंड सोचने के बाद विक्रांत ने कहा, अच्छा! कौन सी बुक?’

कृति ने ओ. हेनरी की कहानियों का कलेक्शन निकाला और विक्रांत को थमा दिया। ओह, ये किताब! तुम्हारे पास थी। मैं तो भूल ही गया था,’ विक्रांत ने कहा।

हाँ, तुमने न जाने किस-किस को क्या-क्या दिया है। कहाँ से याद रहेगा?’ कृति ने बोला। अगले ही पल उसे लगा कि वो क्या बोल गयी। कहीं बुरा न मान जाये।

हाँ यार, मुझे रेकॉर्ड रखना चाहिए कि किस को कौन सी बुक दी है। तुमने तो शराफत से बुक लौटा दी है। कई लोग अपना समझकर रख लेते हैं,’ विक्रांत उस किताब के पन्नों को पलट रहा था। वो अपनी किसी भी पुरानी किताब को खोलते समय यह देखता था कि उसने किस-किस हिस्से को अंडरलाइन किया है।

तुम्हारी दो-तीन बुक्स गायब भी हो जाएँ तो क्या फर्क पड़ता है। सुना है तुम्हारा कलेक्शन काफी अच्छा है।

हाँ, कुछ किताबें हैं मेरे पास। पर तुम्हें कैसे पता?’

हॉस्टल में किसे नहीं पता? शैलजा ने बताया है।

ओह, अच्छा! अंदर आ जाओ। अगर देखना चाहो तो।

कोई प्रोब्लेम तो नहीं है?’

नहीं, प्रोब्लेम क्यों होगी। हाँ, सामान थोड़ा बिखरा पड़ा है। चाय बनाकर नहीं पिला पाऊँगा।

नहीं, मैं तो बस दो मिनट रुकूँगी, एक नज़र देखना है कि क्या-क्या पढ़ते हो तुम?’

हाँ, हाँ। बिलकुल आ जाओ।

कृति विक्रांत के कमरे में आई तो थोड़ी चौंक गई। ये लड़का सिर्फ किताबें पढ़ता रहता है क्या? दो बुक शेल्फ किताबों से भरी हुई थीं। विक्रांत ने गलत कहा था। कोई भी सामान बिखरा हुआ नहीं था। पैकिंग किया हुआ सामान कोने में काफी करीने से रखा हुआ था। दीवारों पर उसकी बनाई दो पेंटिंग्स सजी हुई थीं। पता नहीं उस कमरे में क्या था कि अचानक कृति काफी रिलैक्स फील करने लगी। जैसे वो अपने घर में आ गयी हो। वो समझ गयी इस कमरे में उसके पहले एक दर्जन लड़कियां क्यों आ चुकी हैं। उसे महसूस होने लगा था कि ये उसका अपना घर है  और विक्रांत उसका गेस्ट है। इतना आराम और बेतकल्लुफ़ी तो वो अपने बोयफ्रेंड के यहाँ भी महसूस नहीं करती थी। दरअसल वो वहाँ जाने से पहले दो बार सोचती थी। उसके घुसते ही उसका माशूक बिना दो पल देरी किए उसे नोचने के लिए दौड़ता था। मूड बनने से पहले मूड का सत्यानाश कर डालता था।

विक्रांत अपने बैग में कपड़ों को सजाने लगा। कृति एक बूक शेल्फ के पास गयी, और किताबों को ध्यान से देखने लगी। कई आर्टिस्ट्स की बायोग्राफ़ि थी, कई उपन्यास रखे हुये थे, फ़िलॉसफ़ि से संबन्धित कई किताबें थीं। तब उसकी नज़र फिसलते-फिसलते दायें कोने में पड़ीं। मोटी सी चमकीले कवर वाली कामसूत्र एक रानी की तरह विराजमान थी। बगल में lovemaking पर एक और किताब थी। कृति की नज़र तो वहाँ जाकर चिपक गई। विक्रांत भी देख रहा था कि कृति का ध्यान किधर है।

तुम काफी इंट्रेस्टिंग किताबें पढ़ते हो,’ कृति ने बिना मुड़े हुये कहा।

हाँ, जिन चीजों में इंटरेस्ट हो उन पर किताबें पढ़ता हूँ।

मैंने आज तक किसी के पास इतनी वाइड रेंज की किताबें नहीं देखीं।

ओके,’ विक्रांत ने कहा। वो उठा और कृति के बगल में जाकर खड़ा हो गया। तुम चाहो तो किताब निकालकर देख सकती हो।

कृति ने कामसूत्र निकाली और उसके पन्ने पलटने लगी। उसे खुद विश्वास नहीं हो रहा था कि किसी लड़के के सामने वो इतनी सहजता से कामसूत्र की तसवीरों को देख रही है। अपने बोयफ्रेंड के सामने भी ऐसे नहीं कर सकती थी। उसे लगता था कि सेक्स में इंटरेस्ट दिखाने से कोई उसे चरित्रहीन न समझ ले, उसके बारे में उल्टी-सीधी बातें न कहने लगे। पर यहाँ वो बिना किसी झिझक के जो चाहे कर सकती थी, बोल सकती थी। सामने खड़ा लड़का न उसके बारे में कुछ उल्टा-सीधा सोचेगा, और न किसी को जाकर बोलेगा। ऐसा उसका सिक्स्थ सैन्स कह रहा था।

कृति एक-एक करके सारे पन्ने पलटे जा रही थी। अंदर की तस्वीरें बहुत सुंदर थीं।

तुम चाहो तो घर ले जाओ। मेरी कल शाम में ट्रेन है। कल दोपहर तक वापस कर देना।

मुझे अपने घर से भगा रहे हो?’ कृति ने शरारत से कहा।

अरे, ऐसा नहीं है।

कोई गर्लफ्रेंड आने वाली है?’

हाँ, आने वाली तो है। पर शाम में। अभी 4-5 घंटे हैं।

अब तक कृति अपने-आपको बुरी नीयत वाले लड़कों से बचाती थी। पर आज लग रहा था कि वो बुरी नीयत वाली लड़की बन गई है, और विक्रांत को अपने-आपको उससे बचाना होगा। उसके हाथ हौले से विक्रांत की बांह को छूने लगे। विक्रांत अपनी जगह से हिला नहीं। कृति का अपना हाथ वहाँ से हटाने का मक़सद नहीं था। उसका शरीर  हल्का सा अकड़ गया था। सांसें थोड़ी तेज़ हो गईं थीं। वो अपनी नज़रें किताब के पन्नों से हटा नहीं पा रही थी, हालांकि मन तो बहुत था कि देखे विक्रांत की आँखें क्या कह रही हैं।

अंदर की एक झिझक उसे रोक रही थी। नहीं तो उसका बस चलता तो आज वो विक्रांत का रेप कर डालती। उसे पता नहीं था कि उसके अंदर ऐसी भी ख्वाहिशें मौजूद हैं। वो तो बस प्रार्थना कर रही थी कि विक्रांत अगला कदम उठाए। सिर्फ एक स्पर्श से वो अंदर ही अंदर उबलने लगी थी।

विक्रांत ने ज़्यादा इंतज़ार नहीं कराया। एक अनुभवी खिलाड़ी के साथ वक़्त बिताने का यही फायदा है। वो कृति के पीछे जाकर खड़ा हो गया। उसने हल्के से उसके लटकते बालों को दायें हाथ से कंधे की ओर सरकाया और अपने होठों को कृति की गर्दन के पीछे वाले हिस्से के पास ले गया। उसकी गरम सांसें जैसे ही गर्दन से टकराईं, कृति सिहर गई। वो इंतज़ार करने लगी कि अब विक्रांत क्या करता है।

विक्रांत के अपने होठों को अपनी जीभ से गीला किया और एक हल्का सा चुंबन कृति की गर्दन के पीछे जड़ दिया। कृति को लगा जैसे किसी ने बारूद के पलीते को चिनगारी दिखा दी है। उसके बाद विक्रांत ने मखमल जैसे मुलायम चुंबनों से कृति की गर्दन का एक-एक हिस्सा भर दिया। कृति अपनी आँखें बंद करके पूरे ध्यान से एक-एक चुंबन को महसूस कर रही थी। मन में कोई विचार नहीं था। विचार आनंद में बाधा न बन जाएँ, कृति को इस बात का डर था। 

चुंबन करते समय बीच-बीच में रुककर विक्रांत कृति की गर्दन को सूंघने लगता था। सूंघते-सूंघते अपने दांतों से हल्के-हल्के काटने लगता था जैसे दांतों की नोंक से उसकी त्वचा को खुरचकर अलग कर देना चाहता हो। फिर जीभ से छुरे की नोंक की तरह उसकी गर्दन पर हजारों निशान बनाने की कोशिश करता था।

कृति का शरीर ऐसी हरकतें करने लगा मानो एक बोरे में किसी शेर को बांध दिया गया हो और वो छटपटाकर बाहर निकलने की पुरजोर कोशिश कर रहा हो। मिनट दो मिनट में कृति के सब्र का बांध टूट गया, उसके अंदर की झिझक न जाने कहाँ गायब हो गई, और वो पीछे मुड़ी।

फिर तो वह विक्रांत पर झपट पड़ी। उसने विक्रांत के होठों को अपने होठों से खोला और उसे अपनी जीभ से भर दिया। उसकी जीभ विक्रांत के हलक को ऐसे टटोलने लगी जैसे कोई बिल्ली सुरंग में घुसना चाह रही हो।

उसे विक्रांत के मुंह का स्वाद बहुत पसंद आ रहा था। उसकी जीभ उस स्वाद का कोई भी कतरा छोडना नहीं चाहती थी। उसने अपने दोनों हाथों से विक्रांत की बाहों को जकड़ रखा था ताकि विक्रांत उसकी पकड़ से नहीं छोत न जाये और उसे जन्नत से बेदखल न कर दे।

लेकिन विक्रांत का ऐसा कोई इरादा नहीं था। उसे बारूद के पलीते में चिनगारी दिखाना आता था। साथ ही उसे बारूदखाने के हर हिस्से की भी जानकारी थी। उसने कृति का कुर्ता पीछे से उठाया, बाएँ हाथ से उसके नितंब के एक गाल को पकड़ा ताकि वो ज़्यादा हिल न पाये, फिर दायें हाथ की उँगलियों की नोंक से से नितंबों के बीच की दरार को ऊपर-नीचे रगड़ने लगा। फिर दरार के बीच की नन्ही सुरंग में अपनी एक अंगुली चुभोने लगा।

कृति ने विक्रांत को बिस्तर पर धकेलकर गिरा दिया, और उसे ज़्यादा ज़ोर से चूमने लगी। उसका बस चलता तो विक्रांत को खा जाती। चूमने के साथ-साथ वो अपने गुलाब को विक्रांत के दंड पर रगड़ने लगी।

आज वो मूड में थी। उसे लग रहा था वो एक शेरनी है जिसने हिरण के बच्चे को दबोच रखा है। तभी उसका मोबाइल बज उठा। वो मोबाइल के साइलेंट करने वाली थी कि उसने देखा कि सुरंजना का फोन है। ओह गॉड! उसे तो अभी डिपार्टमेंट जाना है। सर्टिफिकेट लेने। अगर अभी नहीं गयी तो फिर पाँच दिनों का इंतज़ार करना होगा। फिर तो सारा प्रोग्राम ही चौपट हो जाएगा।

वो बेमन से उठी, लेकिन अभी भी विक्रांत को गिद्ध वाली नज़रों से देख रही थी। उसने कमीनी मुस्कान चेहरे पर लाकर कहा, मुझे जाना होगा। आज तुम बच गए।

विक्रांत ने कहा, मैं इसके लिए तुमको और भगवान को माफ.....कभी नहीं करूंगा।

हल्के से हँसते हुये कृति ने कहा, मैं तुमसे काफी देर से मिली। पहले मिलती तो तुम्हारा दर्जनों बार रेप कर चुकी होती। वो अपने कपड़ों को ठीक करने लगी।

विक्रांत के फ्लॅट से निकलते समय कृति की मुस्कुराहट रुक नहीं रही थी। ये पहली बार हुआ था कि उसने किसी को सही मायने में चूमा था। भगवान विक्रांत जैसे लड़कों को इतनी कम संख्या में क्यों बनाता है और उसके बोयफ्रेंड जैसे लड़कों को थोक के भाव क्यों बनाता है! यही सवाल उसके मन में घुमड़ रहा था।